तांडव की रात – भोग
श्रेणी: हॉरर, तंत्र-मंत्र, रहस्य
लंबाई: लगभग 2500 शब्द
ब्लॉग ब्रांड: RuhRahasya
प्रस्तावना:
गाँव का वो मंदिर, जो रात को साँस लेता था...उत्तर भारत के एक दूरस्थ गाँव 'कौलापुर' में एक प्राचीन शिव मंदिर था। पर ये कोई साधारण मंदिर नहीं था। कहते हैं वहाँ शिव की नहीं, रूद्र के तांडव स्वरूप की पूजा होती थी। गाँव के बड़े-बुज़ुर्गों की मानें तो इस मंदिर में रात्रि के तृतीय प्रहर में शिव तांडव करते थे, और उस समय कोई वहाँ गया, तो वो लौटता नहीं था... या लौटा भी, तो वैसा नहीं रहा।
इस मंदिर के पीछे एक और रहस्य था — श्मशान घाट। एक ऐसा श्मशान जहाँ सिर्फ़ वही लोग जलाए जाते थे जो "भोग के लिए चुने गए हों।" कौन चुनता था? कैसे? इसका जवाब किसी के पास नहीं था। पर गाँव में एक मान्यता थी — हर 12वें वर्ष तांडव की रात आती है, जब "अघोरी तंत्रियों का भोग" चढ़ाया जाता है, और मंदिर जीवित हो उठता है।
अध्याय 1: आगमन
अर्जुन, शहर से पढ़कर लौटा युवक, जिसने कभी तंत्र-मंत्र पर विश्वास नहीं किया। वह गाँव का ही था, पर मॉडर्न सोच वाला। अपने पिता की मृत्यु के बाद, वह माँ के साथ गाँव लौट आया। पर गाँव में आते ही चीजें अजीब लगने लगीं। रात को सपने में मंदिर की घंटियाँ सुनाई देतीं, श्मशान की राख की गंध तक कमरे में महसूस होती।
एक रात, अर्जुन को गाँव के पुजारी ने बुलाया। "तू चुना गया है," पुजारी ने कांपती आवाज़ में कहा, "भोग के लिए नहीं, साक्षी बनने के लिए।"
अध्याय 2: पुराना ग्रंथ और भविष्यवाणी
पुजारी ने अर्जुन को एक ताड़पत्र पर लिखा ग्रंथ दिखाया जिसमें लिखा था:
"जब अग्नि से जन्मा बालक नगर लौटे, तब तांडव की रात जागेगी। रुद्र प्रसन्न होंगे यदि साक्षी निर्भीक हो।"
अर्जुन हँस पड़ा, लेकिन पुजारी गंभीर था। उसने कहा, "तेरे पिता एक अघोरी थे, अर्जुन। तू अग्नि से जन्मा है, जन्म के बाद तुझे अग्नि स्नान कराया गया था। तुझमें संस्कार हैं।"
अर्जुन का दिमाग चकरा गया।
अध्याय 3: श्मशान की सीढ़ियाँ
12वीं अमावस्या की रात। मंदिर में न कोई दिया, न घंटी। सिर्फ़ चंद्र की धुंधली रौशनी और दूर से आती ढोल की आवाज़।
अर्जुन को पुजारी ने मंदिर के पिछले दरवाज़े से भेजा, जहाँ से एक गुप्त मार्ग सीधा श्मशान की तरफ़ जाता था। वो श्मशान की सीढ़ियाँ पत्थर की नहीं, हड्डियों की बनी थीं। उस पर पाँव रखते ही शरीर सुन्न पड़ने लगा। नीचे तांत्रिकों का मंडल बना था — रक्त से खींचा गया यंत्र, चारों तरफ शवों से बनी दीवारें।
अध्याय 4: भोग की तैयारी
भोग चढ़ाया जाना था — पर किसी इंसान का नहीं — एक "चेतन पिंड" का। पुजारी ने अर्जुन को बताया, भोग में इस बार "भूत-पिशाचों को शांत करने के लिए" एक विशेष प्रक्रिया की जा रही है। एक शव को मंत्रोच्चार और अघोरी क्रियाओं से चेतना दी जाएगी, और तांडव के समय उसका विसर्जन होगा।
अर्जुन के सामने वह शव रखा गया — उसका चेहरा देखा, और उसकी चीख निकल गई। वो चेहरा उसके पिता का था।
अध्याय 5: तांडव की रात
आधी रात। तांडव आरंभ हुआ। तंत्रियों ने नगाड़े बजाने शुरू किए। मंत्र गूंजने लगे:
“ॐ क्रीं कालभैरवाय नमः।”
“ॐ नमः रूद्राय, तांडवाय, रात्रिचराय।”
श्मशान काँप उठा। शव में हरकत होने लगी। हवा तेज़ चली, राख उड़ने लगी, जैसे कोई असुर जाग रहा हो। अर्जुन की आँखें फटी की फटी रह गईं जब उसने देखा कि उसके पिता का शव बोल उठा:
“अर्जुन… तांडव अधूरा है। मुझे मुक्त कर…”
अर्जुन काँपता रहा। पुजारी चिल्लाया, “तू ही है तांडव का यज्ञकर्ता। तेरा रक्त ही देगा उसे मुक्ति!”
अध्याय 6: रक्त यज्ञ
अर्जुन के सामने दो विकल्प थे — भाग जाए, या पिता को मुक्ति दे। वो आगे बढ़ा, खंजर उठाया, और अपनी हथेली काट दी। रक्त जैसे ही शव पर गिरा, बिजली चमकी, पूरा श्मशान दहक उठा। शव ने एक जोरदार चीत्कार किया और राख बन गया।
तांडव थम गया। पर मंदिर के ऊपर एक त्रिनेत्र खुला — सचमुच खुला। और अर्जुन बेहोश होकर गिर गया।
अंत: सुबह का सूरज और नया सन्नाटा
अर्जुन की आँख खुली तो मंदिर प्रांगण में था। न कोई पुजारी, न तांत्रिक, न शव। सिर्फ़ राख और वो पुराना ग्रंथ पड़ा था — जिसमें अंतिम पंक्ति जुड़ चुकी थी:
"साक्षी सफल, तांडव पूर्ण, चक्र अब आरंभ।"
अर्जुन अब सिर्फ़ अर्जुन नहीं रहा। वह अब 'नवाग्नि' था — अगला तांत्रिक, अगला साक्षी, अगले तांडव का वाहक।
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डिस्क्लेमर: यह कहानी एक काल्पनिक रचना है, जिसका उद्देश्य केवल मनोरंजन और रहस्य-रोमांच से भरा अनुभव देना है। इसमें वर्णित घटनाएं, स्थान, पात्र और परंपराएं पूरी तरह लेखक की कल्पना पर आधारित हैं। इनका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति, स्थान या वास्तविक घटना से कोई संबंध नहीं है। तंत्र, मंत्र और अंधविश्वास को बढ़ावा देना हमारा उद्देश्य नहीं है। कृपया इसे केवल एक हॉरर फिक्शन के रूप में लें।

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