खिड़की के उस पार कोई था…(एक सच्ची भूतिया घटना)


रात में वीरान खड़ी एक भूतिया हवेली, खिड़की में लाल आंखों वाली आत्मा की परछाईं

       जिस खिड़की से वो मुझे घूर रही थी… वहीं से सब शुरू हुआ।


"मेरा नाम विशाल है। मैं कोई लेखक नहीं हूं, ना ही कोई यूट्यूबर। मैं बस एक आम इंसान हूं जिसने कुछ ऐसा देखा और महसूस किया, जिसे आज तक भूल नहीं पाया। ये कोई कहानी नहीं, ये मेरी ज़िंदगी का सबसे डरावना सच है..."




भाग 1 – गांव की वो हवेली


यह घटना 2019 की गर्मी की थी। मैं शहर की जिंदगी से थक-हारकर छुट्टियों में अपने मामा के गांव चला गया। बिहार के एक सुदूर इलाके में बसा था वो गांव, मैं पहले भी कई बार वहां जा चुका था, लेकिन इस बार कुछ अलग था। शायद इस बार वो हवेली वहां मेरा इंतज़ार कर रही थी।


गांव के बुज़ुर्ग अकसर “राय हवेली” का ज़िक्र करते थे – एक वीरान, टूटी हुई हवेली जो गांव के बाहर एक पीपल के पेड़ के पास खड़ी थी। गांव के लोग कहते हैं, वहां कभी राजा रायबहादुर रहा करते थे, लेकिन आज वो हवेली सिर्फ सन्नाटे की आवाज़ों से गूंजती है।


"वहां मत जाना बेटा..." – मेरी मामी ने मुझसे साफ मना किया था।


पर इंसान जिस चीज़ से डरा जाता है, अक्सर उसी की ओर खींचा चला जाता है। मेरे साथ भी यह हुआ।


भाग 2 – पहली झलक


मेरे दो बचपन के दोस्त हैं मोंटी और समीर। हम सब मिलकर पहले ही हवेली देखने का प्लान बना चुके थे। हम तीनों की आदत थी कुछ नया एक्सप्लोर करने की। एक रात, जब गांव में बिजली चली गई और सब सोने लगे, तो हम तीनों दोस्त टॉर्च लेकर निकल पड़े हवेली की ओर।


हवेली दूर नहीं थी। रास्ता सुनसान था, और गर्मियों की उस रात में एक अजीब सी नमी थी। जैसे-जैसे हम हवेली के पास पहुंचे, एक ठंडक सी बदन में घुसने लगी थी।


“भाई… खिड़की में देखो!” – मोंटी ने फुसफुसाकर कहा।




मैंने नज़र घुमाई – हवेली की दूसरी मंज़िल की टूटी खिड़की पर कोई साया खड़ा दिखाई दिया।

बस खड़ा… बिना हिले… हमें घूरता हुआ देख रहा था।


वो इंसान नहीं था – उसकी आकृति मानो धुंध सी थी, लेकिन आंखें… वो लाल थीं। चमकती हुई। जिसे देखकर हमारी रूह कांप उठी।


हम डरकर पीछे हटने लगे, पर मोंटी ने हिम्मत दिखाई और बोला “चल अंदर चलते हैं, देखते हैं क्या है इस हवेली में।”


भाग 3 – हवेली के अंदर


जैसे ही हमने दरवाज़ा खोला, एक झटका सा लगा। जैसे किसी ने धक्का मारा हो, पर सामने कोई नहीं था।


हवेली के अंदर अंधेरा था, सड़ांध की गंध और फर्श पर बिखरे पुराने खिलौने, जले हुए काग़ज़ और दीवारों पर खून जैसे धब्बे। बहुत डरावना माहौल था वहां का।


"यहां तो कोई रहता भी नहीं हैं, फिर ये ताज़ा निशान यहां कैसे आ गए?" – समीर ने फुसफुसा कर बोला। मै टॉर्च से कमरे को देखने लगा, टॉर्च की रोशनी जैसे ही कमरे के एक कोने में पड़ी, वहां एक पुरानी कुर्सी पर कुछ बैठा हुआ दिखा। हमने टॉर्च हटा ली… और जब दोबारा रोशनी डाली, वो चीज़ वहां नहीं थी।


अब हम समझ चुके थे – ये कोई आम जगह नहीं है, यहां कुछ गड़बड़ जरूर है। तभी मुझे ऊपरी मंजिल की ओर जाने वाली सीढ़ि नजर आई। 


भाग 4 – खिड़की से उतर आई…


हम सीढ़ियों से ऊपर जा रहे थे कि अचानक फर्श चरमराने लगा। खिड़की वाली मंज़िल पर पहुंचकर हमने चारों ओर देखा… खिड़की खुली थी, पर वहां कोई नहीं था।


तभी… किसी ने पीछे से डरावनी आवाज में कहा –

"वो उतर आई है..."




हमें किसी की सासों की आवाज़ सुनाई दी। हम पलटे – लेकिन अब वहां कोई नहीं था।


लेकिन तभी एक-एक कर हम सबके हाथों के टॉर्च बंद हो गए।

और सिर्फ सन्नाटा और हमारे दिल की धड़कनें सुनाई दे रही थीं।


 “तप... तप... तप...”

अचानक किसी के कदमों की आवाज़ सीढ़ियों से आती सुनाई दी। जैसे कोई नीचे से ऊपर की तरफ चढ़ रहा था… पर कोई दिख नहीं रहा था। तभी मोंटी की चीख सुनाई दी।




मोंटी की चीख सुनते ही हम भागे… और उसी खिड़की के पास पहुंचे, जहां से पहली बार हमने देखा था।


अब खिड़की पर हमारा अक्स नहीं, किसी और का अक्स था।


भाग 5 – मौत के दरवाज़े से लौटे


हम जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर हवेली से बाहर निकले। पीछे से दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया… ज़ोर की आवाज़ हुई, जैसे किसी ने अंदर किसी को कैद कर लिया हो।


उस रात हम बिना कुछ बोले घर लौटे। किसी ने कुछ नहीं कहा। लेकिन डर यहीं खत्म नहीं हुआ।


भाग 6 – उसके बाद क्या हुआ…


अगली कुछ रातों तक, मेरे कमरे की खिड़की अपने आप खुलने लगी।

मैं रात को खिड़की बंद करके सोता, जो सुबह फिर खुली मिलती।

एक रात तो मैंने साफ - साफ सुना – किसी ने मेरे कान में फुसफुसाकर कहा:


"तू बच कैसे गया विशाल...?"




अब तो हालात ये हो गए कि मैं गांव छोड़कर वापस शहर आ गया। लेकिन वो आंखें… वो खिड़की… आज भी मेरे सपनों में आती है। और मेरी रूह तक कांप उठती हैं।


क्या ये सिर्फ मेरा वहम था?

या फिर कुछ ऐसा... जो आज भी राय हवेली में भटक रहा है?

क्या वो किसी की आत्मा थी?

या कोई ऐसा राज़... जो हवेली के साथ दफन था?





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निष्कर्ष:


ये कहानी मैं आपको सिर्फ डराने के लिए नहीं सुना रहा... बल्कि इसलिए, ताकि आप समझ सकें – हर पुरानी जगह खाली नहीं होती... कुछ रह जाते हैं वहां... और वो कभी खिड़कियों से झांकते हैं, तो कभी आपकी परछाईं बनकर साथ चलते हैं।


अगर आपने भी कुछ ऐसा महसूस किया हो...

 तो कमेंट में ज़रूर बताएं।

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अगर आप कभी किसी वीरान हवेली के पास जाएं, और वहां की खिड़की से कोई आपको घूरता दिखे… तो अंदर मत जाइए। क्योंकि हर खिड़की बाहर नहीं, कभी-कभी अंदर की दुनिया में भी खुलती है।