Singhwara Haveli: तीसरी मंज़िल का रहस्य


भूतिया हवेली की तीसरी मंज़िल - लाल खिड़की में छाया जैसी परछाई





लेखक: वेदांत घोष

श्रेणी: हॉरर | रहस्य | सस्पेंस



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"आप ऊपर मत जाइए... वहाँ कोई है।"


वेदांत ठिठक गया।


ये आवाज़ किसी की नहीं थी। कमरे में कोई नहीं था। फिर भी हवा में यह चेतावनी गूंज गई थी।


प्रस्तावना:


मैं वेदांत घोष, रहस्यमय और डरावनी कहानियों का खोजी लेखक। पिछले पाँच सालों से मैं भारत की उन जगहों की सच्ची कहानियाँ लिख रहा हूँ जहाँ सामान्य लोग जाने की हिम्मत नहीं करते। लेकिन जो मैंने रायगढ़ की 'सिंहवाड़ा हवेली' में देखा — उसने मेरी रूह तक हिला दी।


यह कहानी नहीं... ये एक दस्तावेज़ है उस रात का, जब मैं तीसरी मंज़िल तक गया...




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भाग 1: आमंत्रण


सब कुछ एक ब्लॉग पोस्ट से शुरू हुआ। मैंने अपनी वेबसाइट "RuhRahasya" पर एक लेख लिखा था — "भारत की 5 सबसे डरावनी जगहें"। पोस्ट को कुछ ही घंटों में हज़ारों व्यूज़ मिल गए। लेकिन असली सरप्राइज़ एक अजीब कमेंट था:


> "मैं तीसरी मंज़िल से लौट आया हूँ। लेकिन मैं अब भी वहीं हूँ।


R.M.103"





नाम अजीब था — R.M.103 लोकेशन: रायगढ़, मध्य प्रदेश।


मैंने खोज शुरू की, और जल्द ही पता चला — रायगढ़ में एक पुरानी हवेली है, सिंहवाड़ा हवेली। जो दशकों से वीरान है। वहां कोई जाता नहीं, और जो गया, वो लौटा नहीं।



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भाग 2: हवेली का पहला दर्शन


तीन दिन बाद, मैं रायगढ़ पहुंचा। दोपहर की तपती धूप में भी हवेली स्याह लग रही थी। उसका गेट लोहे का था — जंग खाया हुआ, फिर भी भारी और डरावना।


जैसे ही मैंने उसे छुआ, वो खुद-ब-खुद खुल गया।


हवा में कुछ सड़ांध थी, जैसे पुरानी लकड़ी और नमी में लिपटी कोई सड़ी हुई याद। अंदर प्रवेश करते ही दीवारें फुसफुसा उठीं — जैसे कोई मेरी मौजूदगी से खुश नहीं था।



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भाग 3: पहली और दूसरी मंज़िल


पहली मंज़िल पर पुराने फर्नीचर, दीवारों पर टूटे फ्रेम, और ज़मीन पर बिखरी चिट्ठियाँ थीं। उनमें से एक पर खून के धब्बे थे। मैंने उसे पढ़ना चाहा, लेकिन अक्षर मिट चुके थे।


दूसरी मंज़िल ज़्यादा वीरान थी। वहां एक कमरे में आइना था, जिसमें मेरी परछाई की जगह कोई और दिख रहा था — एक लड़की, जिसके बाल भीगे हुए थे और आँखों से खून बह रहा था।


मैंने मुड़कर पीछे देखा — कोई नहीं था। लेकिन आइने में वो अब भी मुझे घूर रही थी।



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भाग 4: तीसरी मंज़िल की सीढ़ियाँ


वो सीढ़ियाँ टूटी हुई थीं, लेकिन मानो किसी ताक़त ने उन्हें मेरी खातिर सुरक्षित रखा था।


हर कदम भारी लगने लगा। जैसे किसी ने मेरे पैरों में पत्थर बांध दिए हों। हर सांस धीमी, और कानों में गूंजने लगी फुसफुसाहट —


> "मुझसे मत मिलो… वापस लौट जाओ…"




लेकिन मैं रुका नहीं। तीसरी मंज़िल का दरवाज़ा लकड़ी का था, उस पर किसी ने अंदर से खरोंच कर नाम लिखा था:


"वेदांत…"


मैंने दरवाज़ा खोला।



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भाग 5: तीसरी मंज़िल का रहस्य


अंदर घना अंधेरा था। टॉर्च जलाने पर कमरे की दीवारें लाल दिखीं — जैसे किसी ने वहाँ खून से चित्र बनाए हों।


एक कोने में वही लड़की खड़ी थी। अब वो मुझे साफ दिख रही थी। वो बोली:


> "तुमने आना चुना, अब जाना मुमकिन नहीं।"




मैं पीछे भागा, लेकिन दरवाज़ा गायब था। पूरा कमरा बदल चुका था। अब मैं एक दर्पणों के मकबरे में था — हर दिशा में सिर्फ शीशे… और हर शीशे में एक अलग मौत।



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भाग 6: वापसी या फंसा हुआ?


किसी तरह मैं बेहोश हुआ। जब होश आया तो मैं हवेली के बाहर था। कैमरा, बैग, और रिकॉर्डर — सब गायब थे।


लेकिन मेरी जेब में एक चीज़ थी — वो चिट्ठी, जो दूसरी मंज़िल पर मैंने देखी थी।


इस बार अक्षर साफ थे:


> "मैं वेदांत हूँ… मैं अब भी तीसरी मंज़िल पर हूँ… और अब तुम भी हो।"





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समापन:


मैं वापस लौट आया, लेकिन कुछ बदला हुआ है। अब मुझे सपनों में वो हवेली दिखती है। और कभी-कभी, मेरी परछाई मुझे नहीं फॉलो करती… मैं उसे फॉलो करता हूँ।


मैंने ब्लॉग पर ये आखिरी वाक्य लिखा:


"तीसरी मंज़िल खाली नहीं है… और मैं भी अब नहीं।"



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अगले एपिसोड में:


एपिसोड 2 – राजमहल की आखिरी सीढ़ी


वेदांत एक पुराने महल की ओर बढ़ रहा है, जहाँ हर रात एक आत्मा सीढ़ियों पर गिनती करती है… और आखिरी सीढ़ी

 पर कोई लौट कर नहीं आता।


अंधेरे का सफर- एपिसोड 2 यहां से पढ़े।

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Disclaimer :


यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है और केवल मनोरंजन के उद्देश्य से लिखी गई है। इसमें वर्णित घटनाएं, स्थान और पात्रों का किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है।