पुरानी हवेली की पहली रात
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| वह पुरानी हवेली जहाँ से डर की साँसें निकलती हैं – कहानी 'वह हवेली जो साँस लेती थी' से, लेखक: RuhRahasya |
गाँव का नाम था मल्हारपुर, एक ऐसा इलाका जहाँ समय जैसे थम-सा गया हो। यहाँ की मिट्टी में पुराने किस्सों की गंध थी और हवा में सिसकती कहानियों की फुसफुसाहट। गाँव के बाहर, एक जंगली रास्ते के उस पार, घने साल और पीपल के पेड़ों के बीच छिपी हुई थी एक हवेली — "विरान कोठी"। इस कोठी की ईंटें तक जैसे बीते जमाने की चीखों को अपने भीतर समेटे खड़ी थीं।
कहते हैं, सूरज ढलते ही उस हवेली के आसपास की ज़मीन तक काँपने लगती है। गाँव के बूढ़े-बुज़ुर्ग कान में बतियाकर कहते, “रात में कोई उस हवेली की तरफ देखे भी मत... वहां वो है…”
वो कौन?
कोई नहीं जानता था। या शायद जानता था, पर बोलने की हिम्मत नहीं करता था।
शहर से लौटता एक लड़का
अर्जुन, बीस साल का एक पढ़ा-लिखा युवक, अपने कॉलेज की छुट्टियों में अपने दादा-दादी के पास गाँव आया था। बचपन यहीं बीता था उसका, लेकिन शहर के शोरगुल और आधुनिक दुनिया ने उसके ज़हन में इन कहानियों की जगह 'काल्पनिक बकवास' भर दी थी।
“भूत-वूत कुछ नहीं होता दादी… सब मन का वहम है,” वह अक्सर हँसते हुए कहता।
लेकिन उस रात, कुछ ऐसा हुआ जिसने उसकी सोच की बुनियाद हिला दी।
रात का अजीब राग
गर्मी की रात थी। सारे गाँव में सन्नाटा पसरा था। पंखा नहीं था, बस खिड़की से आती ठंडी हवा ही सुकून दे रही थी। अर्जुन चारपाई पर लेटा छत की तरफ ताक रहा था कि अचानक दूर कहीं से एक करुणामयी रुलाई की आवाज़ उसके कानों में पड़ी।
वो आवाज़ और कोई नहीं, हवेली की तरफ से आ रही थी।
वह एक क्षण के लिए चौंका, फिर उठकर खिड़की से झाँका। सब कुछ शांत था, लेकिन दिल की धड़कन तेज़ हो गई थी। वह आवाज़ दोबारा आई — धीमी, डूबी हुई, जैसे किसी लड़की की रूह कराह रही हो।
"क्या सच में कोई वहाँ है?" अर्जुन ने खुद से पूछा।
जिज्ञासा और भय का मेल
अर्जुन ने टॉर्च उठाई, और बिना किसी को जगाए चुपचाप घर से निकल गया। रात के डेढ़ बज रहे थे। पूरा गाँव सो रहा था। रास्ते में कहीं-कहीं कुत्ते भौंकते, तो कहीं उल्लू की रहस्यमयी सीटी गूंजती। पत्तियों की सरसराहट जैसे हवेली तक पहुँचना मुश्किल बना रही थी।
हवेली के पास पहुँचा तो देखा, उसका विशाल लोहे का गेट खुला हुआ था — जैसे किसी ने उसका इंतज़ार किया हो।
हवा अचानक तेज़ हो गई थी। पत्ते घूमते हुए गेट के चारों ओर नाचने लगे। अर्जुन ने जैसे ही पहला कदम अंदर रखा, पूरा शरीर सिहर गया।
दरवाज़ा खुद खुला
हवेली का मुख्य दरवाज़ा आधा खुला था, लकड़ी की पुरानी चौखट पर खून के भूरे धब्बे थे। अर्जुन ने हल्के हाथ से दरवाज़ा धकेला — एक तीखी आवाज़ के साथ वह अंदर दाखिल हुआ। दीवारों पर मकड़ियों के जाले थे, फर्श पर धूल की मोटी परत। हर कोने से अंधेरा जैसे घूर रहा था।
पर एक कोने में हल्की नीली रोशनी थी — शायद एक लालटेन, जो वर्षों बाद किसी अदृश्य हाथ ने जलायी हो।
अर्जुन ने टॉर्च जलायी और आवाज़ की दिशा में बढ़ा।
पुराना हॉल और बंद कमरा
वह एक बड़े हॉल में पहुँचा — जहाँ कभी संगीत बजते होंगे, अब सन्नाटा पसरा था। दीवारों पर टूटी तस्वीरें लटकी थीं। एक पुराना झूमर बीच में लटक रहा था, लेकिन हिल नहीं रहा था — जैसे वक़्त वहीं थम गया हो।
एक बंद कमरा सामने था, दरवाज़ा अंदर से आधा खुला हुआ। अर्जुन ने हौले से धक्का दिया।
कमरे में घुसते ही ठंड का एक तेज़ झोंका आया। इतनी ठंड कि गर्मियों में भी साँस से भाप निकलने लगी।
और फिर…
पहली झलक
अर्जुन ने देखा — कमरे के बीच में एक लड़की बैठी थी। पीठ उसकी अर्जुन की ओर थी। बाल उसके लंबे, बिखरे हुए और नीचे तक फैले थे। वह सफेद, मैली-सी फ्रॉक पहने थी और उसके कंधे धीरे-धीरे काँप रहे थे — जैसे वो रो रही हो।
अर्जुन ने काँपते स्वर में पूछा, “क..कौन हो तुम?”
लड़की रुकी। उसकी सिसकियाँ बंद हुईं।
वो धीरे-धीरे उठी, और फिर जैसे ही पलटी —
उसकी आंखें काली थीं। पूरी तरह काली। बिना पुतलियों के।
चेहरा निर्जीव, पर आँखें जैसे जल रही हों।
आवाज़ जो दिल चीर दे
लड़की ने धीरे से बोला, “तुम आ गए... मुझे ढूँढते हुए?”
अर्जुन पीछे हट गया। टॉर्च उसके हाथ से गिर गई। अंधेरा और गहरा हो गया। अब बस उस लड़की की साँसों की आवाज़ सुनाई दे रही थी। वो एक-एक कदम उसकी तरफ बढ़ रही थी।
“क्या तुम भी मुझे छोड़ दोगे? जैसे बाकी सब गए…?”
भागने की कोशिश
अर्जुन ने झटपट टॉर्च उठाई और पीछे भागा। हवेली की दीवारें जैसे और लंबी हो गई थीं। गेट की दूरी बढ़ती जा रही थी। वो चीखते हुए भागा, गिरा, उठा, और आखिरकार किसी तरह बाहर निकल पाया।
हवेली के बाहर आकर उसने साँस ली, लेकिन पीठ पीछे से अब भी वो सिसकियाँ आ रही थीं… जैसे वो लड़की अभी भी वहीं खड़ी थी — देख रही थी उसे।
अगली सुबह
सुबह जब अर्जुन की आँख खुली तो वो अपने घर में था। दादी उसके पास बैठी थीं। उसे तेज़ बुखार था।
“क्या हो गया था तुझे अर्जुन? तू बेहोश पड़ा मिला हवेली के बाहर…”
अर्जुन चुप था। उसकी आँखें अब भी डर से चौड़ी थीं।
क्या वो सपना था?
या फिर अर्जुन ने सच में उस ‘काली आंखों वाली लड़की’ को देखा था?
गाँव वालों ने कहा, “अब अर्जुन भी उन लोगों में शामिल हो गया जिन्होंने हवेली को करीब से देखा… और कुछ खो दिया।”
अर्जुन ने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप खिड़की से हवेली की तरफ देखा — और वही आवाज़ फिर आई।
“तुम वापस आओगे ना?”
अगला भाग जल्द आ रहा है....
देखें: वह हवेली जो साँस लेती थी – Part 1 | डरावनी शुरुआत, जहां अर्जुन पहली बार हवेली में कदम रखता है और सब कुछ बदल जाता है।

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