पुरानी हवेली का रहस्य
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| क्या आप इस आईने में माया की परछाईं देख पा रहे हैं? |
भाग 1: वापसी
राहुल दस साल बाद अपने पैतृक गाँव 'धरमपुर' लौटा था। पत्रकार बनने के बाद यह उसका पहला मौका था जब वह गांव आया था। गांव अब वैसा नहीं रहा था — लोग बदल गए थे, लेकिन जो नहीं बदली थी, वो थी गांव के बाहर खड़ी वो खंडहरनुमा हवेली।
बचपन में राहुल ने कई कहानियाँ सुनी थीं उस हवेली के बारे में — कि रात होते ही वहाँ से किसी के रोने की आवाज आती है, कि हवेली की खिड़कियों से एक औरत झांकती है, कि जो भी अंदर गया, लौट कर नहीं आया।
अब राहुल एक अखबार के लिए 'अप्राकृतिक घटनाओं' पर स्टोरी करता था। हवेली उसके लिए सिर्फ एक डरावना किस्सा नहीं, एक संभावना थी — सच्चाई जानने की।
भाग 2: हवेली का प्रवेश
रात का समय था। राहुल ने अपने कैमरे, टॉर्च और रिकॉर्डर के साथ हवेली का रुख किया। दरवाज़ा लकड़ी का था, जंग लगा और थोड़ा खुला हुआ। राहुल ने जैसे ही दरवाज़ा धकेला, वह कर्कश आवाज के साथ खुला। अंदर धूल, मकड़ी के जाले और अजीब सी ठंडक थी, जो बाहर की गर्मी से बिल्कुल उलट थी।
दीवारों पर धुंधली तस्वीरें टंगी थीं — एक ही औरत की कई तस्वीरें। हर तस्वीर में वो औरत अलग कपड़ों में थी, लेकिन उसकी आंखें एक जैसी — ठंडी, गहराई लिए हुए और कुछ कहती सी।
अचानक राहुल को कुछ गिरने की आवाज आई। उसने पीछे मुड़ कर देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था।
भाग 3: तहखाने की डायरी
हवेली की एक सीढ़ी नीचे तहखाने की तरफ जाती थी। राहुल ने टॉर्च जलाकर वहां उतरना शुरू किया। नीचे एक पुराना संदूक रखा था जिस पर धूल की मोटी परत थी। राहुल ने जैसे ही उसे खोला, अंदर एक पुरानी डायरी और कुछ पीतल के सिक्के थे।
डायरी किसी 'माया' नाम की महिला की थी। माया ने लिखा था:
"जिस दिन से मैंने वह प्राचीन आईना लाया, हवेली में अजीब घटनाएं शुरू हो गईं। हर रात मुझे लगता है कोई मुझे देख रहा है। आईने में मैं खुद को नहीं, किसी और को देखती हूँ... कोई जो मेरी तरह दिखता है, लेकिन मैं नहीं हूँ।"
> क्या आपने हमारी सबसे डरावनी कहानी "कमरे का दरवाज़ा कभी बंद मत करना..." पढ़ी है?
भाग 4: आईने का रहस्य
राहुल को उस डायरी में जिस आईने का ज़िक्र था, वह हवेली के ऊपर के कमरे में मिल गया। आईना बेहद पुराना था, उस पर उर्दू में कुछ खुदा था — 'अल-ज़हर', जिसका अर्थ था "विष"।
राहुल ने जैसे ही आईने में देखा, उसे कुछ झटका लगा — उसमें उसकी जगह एक महिला दिखाई दी, वही महिला जो तस्वीरों में थी। अचानक उसकी टॉर्च बंद हो गई।
अंधेरे में किसी के चलने की आहट थी। राहुल ने जल्दी से कैमरा ऑन किया, लेकिन स्क्रीन ब्लैक थी। तभी एक ठंडी सांस उसके कान के पास महसूस हुई और किसी ने फुसफुसाकर कहा, "मुझे बाहर निकालो..."
भाग 5: उलझती परछाइयाँ
राहुल अब समझ चुका था कि ये हवेली किसी आत्मा का बंदीगृह थी — और वो आत्मा थी माया की, जो आईने में कैद थी।
माया की डायरी के अगले पन्नों में लिखा था:
"आईना एक शाप है। मैंने इसे लालच में लाया था। जो भी इसमें देखता है, उसका प्रतिबिंब आईने में कैद हो जाता है और आत्मा वहां बस जाती है। मेरी आत्मा अब इस आईने में है। मुझे मुक्ति दो, वरना तुम्हारा अंत भी मेरे जैसा होगा।"
भाग 6: अंतिम टकराव
राहुल ने सोचा कि अगर आईने को तोड़ दिया जाए तो आत्मा मुक्त हो सकती है। लेकिन जैसे ही उसने कुछ उठाया और आईने की ओर बढ़ा, हवेली में ज़मीन हिलने लगी। दरवाज़े बंद हो गए, खिड़कियाँ अपने आप चटखने लगीं।
आईने में अब एक नहीं, दो चेहरे थे — माया का और राहुल का। राहुल चीखते हुए उसे तोड़ने ही वाला था कि माया की आत्मा बाहर निकली और बोली, "जो भी इस आईने को तोड़ेगा, उसकी आत्मा मेरी जगह लेगी..."
भाग 7: समापन
अगली सुबह गांव वालों ने देखा कि हवेली की खिड़की से एक औरत झांक रही थी — वही चेहरा, वही आंखें।
राहुल की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज हुई, लेकिन उसका कोई सुराग नहीं मिला। पत्रकारों की टीम जब जांच करने हवेली पहुँची, तो उन्हें वही पुराना आईना मिला — उसमें राहुल का चेहरा दिख रहा था, लेकिन वो हिल नहीं रहा था... जैसे किसी फ्रेम में बंद हो।
और हवेली में अब भी हर रात फुसफुसाहट सुनाई देती है:
"मुझे बाहर निकालो... अगला तुम हो..."
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[ समाप्त ]
> नोट: यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है। इसे केवल मनोरंजन हेतु लिखा गया है। इसे वास्तविक स्थानों, घटनाओं या व्यक्तियों से जोड़ कर न देखें।

वेताल
नरकवंश
सत्यसंधान
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नागवंश
रिटर्न ऑफ़ अलकेमी मास्टर
शैडो ऑफ़ गॉड
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