राजमहल की आखिरी सीढ़ी – बंगाल का वो खौफनाक रहस्य जो आज भी ज़िंदा है

राजमहल की आखिरी सीढ़ी


लेखक: वेदांत घोष

श्रेणी: हॉरर | रहस्य | सस्पेंस


---

 सीढ़ी जहां आत्मा रुकी थी...


नक्शेरगढ़ का पुराना राजमहल, वर्षों से वीरान पड़ा था। गाँव के लोग कहते थे कि वहाँ की आखिरी सीढ़ी पर किसी आत्मा का वास है। आखिरी सीढ़ी... जहाँ समय ठहर जाता है। कोई वहाँ नहीं जाता, और जिसने कोशिश की, वो लौटकर नहीं आया।


वेदांत, एक रहस्यमय और डरावनी कहानियों का खोजी लेखक, इन अफवाहों की तह तक जाना चाहता था। वो वीरान जगहों की सच्चाई को उजागर करता था। लेकिन इस बार वो अकेला नहीं गया। साथ में था उसका दोस्त और कैमरा असिस्टेंट – यश।


दोनों ने अपने कैमरे, टॉर्च और एक पुरानी डायरी के साथ उस राजमहल की ओर रुख किया।


राजमहल के बाहर की दीवार पर अजीब सी लकीरें थीं – जैसे किसी नाखून से खींची गई हों। अंदर घुसते ही हवा ठंडी हो गई। चारों ओर धूल, मकड़ियाँ, और दीवारों पर हाथों के उलटे निशान।


सीढ़ियाँ लंबी थीं, पर जैसे हर कदम के साथ कोई पीछे से देख रहा हो।


अचानक एक चीख! सुनाई दी, वेदांत ने टॉर्च घुमाई। सामने कोई नहीं था, लेकिन कैमरे में रिकॉर्ड हुआ — एक धुंधली परछाईं, जो पलभर में गायब हो गई।


और फिर... सीढ़ी का आखिरी पायदान।


डायरी की आखिरी लाइनें:


> "जिसने भी इस आखिरी सीढ़ी पर पाँव रखा है, वो या तो वहीं ठहर गया... या उस औरत के साथ खो गया।"





---


भूतहा सीढ़ियों की दस्तक


वो रात कुछ अलग थी... हवाओं में गूंजती आवाज़ें, जैसे कोई किसी को पुकार रहा हो। महल में घुसते ही सरसराहट ने वेदांत और यश का स्वागत किया।


दीवारों पर अजीब चित्र बने थे – जैसे किसी ने खून से उकेरे हों।

तभी अचानक एक आवाज गूंजी।

"तुम वापस नहीं जा पाओगे..."


डायरी में एक और नोट:

वेदांत ने डायरी खोली उसमें एक नया नोट दिखाई दिया।

> “अगर तुमने आखिरी सीढ़ी पर पाँव रखा… तो वो तुम्हारे पीछे खड़ी हो जाएगी।”




“वो आज फिर आएगी… तुम्हारा इंतज़ार करने।”


गाँव के एक बूढ़े बाबा बताते हैं कि महाराज की बेटी "अनविता" उस सीढ़ी पर मारी गई थी। उसे ज़िंदा जलाया गया। लेकिन उसकी आत्मा वहीं अटकी रह गई।


बाबा बोले: “मैंने उसे देखा है… बालों से ढकी आँखें… जब वो मुस्कुराती है… तो कोई ज़िंदा नहीं बचता।”


रात के 1 बजकर 43 मिनट पर वीडियो रिकॉर्ड हुआ:


> “वो यहाँ है… मेरे बहुत पास… वो हँस रही है… मेरे अंदर कुछ उतर रहा है… यश!! भागो…”




सुबह – यश गायब था। वेदांत बेसुध हालत में सीढ़ी पर मिला। उसके हाथ में डायरी थी, और चेहरे पर खून से लिखा था: “अब मेरी बारी है।”



---


अगली रात…


गाँव में हलचल मच गई। वेदांत कुछ नहीं बोल रहा था।


पर उसी रात, गाँव का एक बच्चा "आरव" नींद में बड़बड़ाने लगा: “वो मुझे देख रही है… खून… दीवारें… सीढ़ियाँ…”


सुबह उसके पैरों पर महल की मिट्टी और खून के निशान थे।


अब हर रात 3 बजकर 3 मिनट पर मंदिर की घंटी अपने आप बजने लगी। बाबा ने कहा: “वो आत्मा अब महल में क़ैद नहीं रही… उसने किसी को चुन लिया है।”


अब वो आत्मा गाँव के हर घर की सीढ़ियों पर देखी जाती है। दीवारों से उल्टा लटकते हुए… रेंगती हुई।


तीन और लोग लापता हो गए। हर दरवाज़े पर खून से लिखा मिला: “मैं वापस आ गई हूँ…”



---

 आखिरी सीढ़ी का रहस्य


वेदांत को एक तांत्रिक के पास ले जाया गया – भैरवनाथ। उसने वेदांत को देख कर कहा: “ये अब इंसान नहीं रहा… इसके अंदर वो है… अनविता।”


तांत्रिक ने महल में रात के समय ‘मंत्र क्रिया’ शुरू की। वेदांत को सीढ़ियों पर ले जाया गया। हर सीढ़ी पर वेदांत की साँसें भारी होती गईं।


तांत्रिक चिल्लाया: “अनविता! अगर तुझे मुक्ति चाहिए, तो बाहर आ! नहीं तो मैं तुझे जला दूँगा!”


हवा तेज़ चलने लगी। महल की दीवारें कांपने लगीं।


और फिर सीढ़ी की आखिरी पायदान से निकलता है एक साया… बाल बिखरे, चेहरा अधजला, आँखें सीधी तांत्रिक पर।


वेदांत अचानक ज़ोर से चीखा: “मैं अनविता हूँ!!”


उसकी आवाज़ दो लहरों में गूंजी – एक नर, एक नारी।


तांत्रिक ने त्रिशूल से ज़मीन पर वार किया। अग्नि की लपटें सीढ़ी से उठीं और वेदांत/अनविता के शरीर को घेर लिया। चीखें… जलती आवाज़ें…


फिर सब शांत। वेदांत गिर पड़ा।



---


एक महीना बाद…


वेदांत ठीक हो गया था। लेकिन वो महल अब गिरा पड़ा था। उस सीढ़ी को किसी ने उखाड़ दिया। लेकिन गाँव वालों का मानना था – आत्मा गई नहीं।


वेदांत ने अपना आखिरी ब्लॉग पोस्ट लिखा:


> “राजमहल की आखिरी सीढ़ी अब नहीं रही… लेकिन अगर तुम्हारे घर की सीढ़ियों पर किसी रात कोई उल्टा लटकता दिखे… तो पलटकर मत देखना।”





---


The End – या शायद नहीं…


अगर आप इस कहानी का Alternate Ending या एक नया Spin-off चाहते हैं – तो कमेंट में लिखिये: “सीढ़ी अब मेरे सपनों में आती है…”


अंधेरे का सफर - एपिसोड 1 यहां से पढ़े।


Disclaimer: यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है और केवल मनोरंजन के उद्देश्य से प्रस्तुत की गई है। इसमें वर्णित घटनाएँ, स्थान और पात्र वास्तविकता से मेल नहीं खाते। कृपया इसे अंधविश्वास से न जोड़ें।