काली आंखों वाली लड़की – अध्याय 2: आईने के पीछे की परछाई
(RuhRahasya Horror Series – Part 2)
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| आईने के पीछे झांकती काली आंखों वाली एक डरावनी परछाई... |
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पिछले भाग का सारांश:
अजुन ने वीरान हवेली में कदम रखा, जहां उसे मिली एक रहस्यमयी लड़की जिसकी आंखें पूरी तरह काली थीं। डर और रहस्य से भरी उस रात ने उसकी सोच को झकझोर दिया…
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अध्याय 2 – आईने के पीछे की परछाई
हवेली की दहलीज़ पार करते हुए अजुन का दिल तेज़ी से धड़कने लगा था। पुरानी लकड़ी की फर्श उसके कदमों के नीचे चरमरा रही थी, और हवा में बसी नमी और सड़न की गंध ने माहौल को और भी डरावना बना दिया था।
उसके हाथ में पकड़ी टॉर्च की रोशनी आगे के अंधेरे को चीरती हुई चल रही थी, लेकिन हर परछाईं अब उसे किसी छुपी हुई आत्मा का आभास दे रही थी।
अंदर दाखिल होते ही उसकी नज़र दायीं दीवार पर टंगी एक पुरानी तस्वीर पर पड़ी। वो एक लड़की की पेंटिंग थी। उसका चेहरा आधा छाया में छुपा था, लेकिन जो हिस्सा दिख रहा था, उसमें उसकी आंखें... वो आंखें जैसे अजुन की आत्मा में झांक रही थीं। बड़ी, काली, गहरी आंखें, जिनमें कोई अंत नहीं दिखता था।
उस पेंटिंग का शीशा टूटा हुआ था, और जैसे ही अजुन उसके पास गया, एक अजीब सी ठंडी लहर उसके शरीर से टकराई।
उसने पेंटिंग के फ्रेम को छूकर देखा — धूल जमी थी, लेकिन जैसे ही उसने साफ करने की कोशिश की, उसे उसके नीचे कुछ खुदा हुआ नज़र आया:
"राजवीर सिंह चौहान" — यह उसके दादा जी का नाम था।
“ये कैसे हो सकता है?” अजुन फुसफुसाया।
उसे याद नहीं था कि उसके दादा का कभी इस हवेली से कोई संबंध रहा हो। लेकिन अब सवाल सिर्फ हवेली का नहीं था, सवाल इस तस्वीर, इन आंखों और इन आवाज़ों का था जो हवेली में दाखिल होते ही उसके कानों में गूंजने लगी थीं।
जैसे ही वह और आगे बढ़ा, एक ज़ोरदार खड़खड़ाहट हुई। ऊपर की छत से कुछ गिरा था। उसने टॉर्च ऊपर की, लेकिन वहाँ कुछ नहीं दिखा। तभी उसकी नज़र सामने पड़े एक बड़े आईने पर गई। वो आईना आधा टूटा हुआ था और उसकी सतह पर धुंधली परछाइयाँ तैरती सी लग रही थीं।
अजुन जैसे ही उस आईने के पास पहुँचा, एक पल के लिए उसे उसमें किसी की परछाई नज़र आई — एक लड़की की। लंबे बाल, सफेद कपड़े, और चेहरा जो पूरी तरह साफ नहीं था, लेकिन उसकी आंखें... वही काली आंखें।
“मैं यहाँ हूँ अजुन…” एक धीमी आवाज़ उसके कानों में पड़ी।
अजुन का दिल बैठने को हुआ। वह पीछे हटा, लेकिन जैसे ही वह पीछे मुड़ा, पेंटिंग में दिखने वाली लड़की आईने में साफ दिखने लगी। अब उसकी आंखें और चेहरा दोनों पूरी तरह स्पष्ट थे। चेहरा गहरा पीला, होंठ नीले, और आंखें… काली, गहरी और मृत।
आईने से आवाज़ें आने लगीं, मानो कोई अंदर फंसा हो और निकलना चाह रहा हो। हर दरार से वही चेहरा झांकता, चिल्लाता, और अजुन को बुलाता।
“तू भाग नहीं सकता…” आवाज़ अब तेज़ हो गई थी।
अजुन ने दौड़ने की कोशिश की, लेकिन जैसे उसके पैर जम गए हों। आईना अब दरारों से चटकने लगा और जैसे ही उसने ज़ोर से चीखा —
आईना ज़ोरदार धमाके के साथ फट गया।
काँच के टुकड़े हर ओर बिखर गए और हवा में एक पल के लिए वह लड़की सामने खड़ी दिखी — जैसे कोई भूत अपनी कैद से बाहर आया हो।
लेकिन जब अजुन ने आंखें झपकाईं… वो गायब थी।
कमरे में अब सिर्फ बिखरे हुए काँच थे और दीवार पर एक नया निशान —
एक हाथ का छापा, लाल रंग का… जैसे खून से बना हो।
अजुन ने बमुश्किल खुद को संभाला और पेंटिंग के नीचे रखे उस डिब्बे को उठाया, जिस पर उसके दादा का नाम खुदा था। डिब्बा अब खुल चुका था। उसके अंदर कुछ कागज़ात और एक पुरानी डायरी थी।
पहला पन्ना खोलते ही उसमें लिखा था:
"अगर ये डायरी पढ़ रहे हो, तो समझ लो कि अब वो जाग चुकी है... और तुम्हें चुना गया है।"
अजुन का शरीर सिहर उठा। हवेली की दीवारों से फिर वही फुसफुसाहट आने लगी थी—
“कह दिया था ना… तू भी उसी रास्ते पर जाएगा।”
और तभी एक झोंका हवा का आया, और वह डायरी अपने आप पलटने लगी। हर पन्ने पर एक नई चेतावनी, एक नया संकेत।
हवेली अब सिर्फ एक इमारत नहीं थी… यह एक जाल था।
जो अजुन को अपनी गिरफ्त में ले चुका था।
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अगले भाग में पढ़ें:
“साया जो कभी गया नहीं”
पिछला भाग: अध्याय 1 पढ़ें
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> नोट: यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है। इसे केवल मनोरंजन हेतु लिखा गया है। इसे वास्तविक स्थानों, घटनाओं या व्यक्तियों से जोड़ कर न देखें।

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