काली आंखों वाली लड़की – अध्याय ३: साया जो कभी गया नहीं



(RuhRahasya Horror Series – Part 3)  


"पुरानी भूतिया हवेली में फटा हुआ आईना, जिससे एक सफेद कपड़ों में काली आंखों वाली आत्मा बाहर निकल रही है
वो साया जो कभी गया नहीं – चंद्रिका की आत्मा और आईने का रहस्य


अर्जुन की उंगलियाँ उस डायरी के पन्नों से फिसल रही थीं, जिन पर किसी और ज़माने की इबारतें थीं। हर शब्द जैसे उसके ज़ेहन में गूंजता था, जैसे वो किसी और की आवाज़ नहीं बल्कि हवेली की दीवारों से निकल रही हो।


डायरी के पहले कुछ पन्नों में पुराने समय की घटनाएँ दर्ज थीं—राजवीर सिंह चौहान के हाथों बनी इस हवेली के रहस्य, और उनकी पत्नी 'चंद्रिका' की रहस्यमयी मौत। लेकिन अगले ही पन्नों में जो लिखा था, वो अर्जुन की रूह कंपा देने वाला था:


"चंद्रिका कभी मरी नहीं थी। उसे बंद किया गया था। आईने में..."


आईना? वही आईना जो अभी फटा था? वही जिससे वो लड़की निकली थी?


अर्जुन को अब यकीन हो चला था कि ये सब एक खेल नहीं था। ये हवेली जिंदा थी, और उसका अतीत अब उसके सामने खुलता जा रहा था। वो तेजी से डायरी के पन्ने पलटने लगा। हर पन्ना एक नई सच्चाई से रूबरू कराता था—आईनों की रूह, रक्त से बंधी आत्माएँ, और 'काली आंखों वाली लड़की' जो किसी भी आईने में दिख सकती थी।


इसी बीच, नीचे से किसी के आवाज़ देने की आवाज़ आई। “अर्जुन! बेटा, तू ऊपर है?”


ये उसकी दादी की आवाज़ थी।


वो भागकर नीचे गया। दादी चूल्हे के पास बैठी थीं, पर उनका चेहरा आज कुछ और ही कह रहा था—कुछ ऐसा जो वो सालों से छुपा रही थीं।


“दादी… मुझे सब सच-सच बताओ… चंद्रिका कौन थी? दादाजी ने क्या छिपाया था?”


दादी की आंखों में डर की लहर दौड़ गई। उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा, “वो लड़की इस गांव की नहीं थी। वो आई थी… बहुत दूर से। पर वो इंसान नहीं थी अर्जुन… वो आईना थी। जीता-जागता आईना… जो किसी की आत्मा कैद कर सकता था।”


अर्जुन ने अविश्वास से पूछा, “आईना? पर कैसे?”


“उसकी आंखों में जो देखता… वो अपने आप को खो देता। वो तेरे दादाजी को चाहती थी। लेकिन जब उन्होंने शादी करने से मना कर दिया, तो उसने अपने आप को हवेली के आईने में बंद कर लिया… पर एक शर्त पर। वो हर सौ साल बाद बाहर आ सकती थी… और अपना बदला पूरा कर सकती थी।”


अर्जुन अब समझ गया था कि क्यों हवेली में अजीब घटनाएं हो रही थीं। क्यों उसकी तस्वीर में काली आंखें थीं। क्यों आईना टूटा था।


दादी ने उसे एक लोहे का ताबीज़ दिया और कहा, “ये तेरे दादाजी ने बनवाया था। इसे पहने रहना… ये तुझे उसकी पकड़ से बचा सकता है।”


पर तभी हवेली के दरवाज़े अपने आप बंद हो गए। खिड़कियों के कांच फटने लगे। चारों तरफ से वही काली आंखें… दीवारों पर… शीशों में… पानी की सतह पर… सब जगह नज़र आने लगीं।


दादी ने अर्जुन का हाथ पकड़ा और कहा, “भागो! ऊपर मंदिर वाले कमरे में चलो!”


दोनों दौड़ते हुए हवेली के दूसरे माले पर पहुँचे, जहाँ एक पुराना मंदिर था। पर मंदिर की दीवारें भी अब कंपन करने लगी थीं।


अर्जुन ने देखा, दीवारों पर खून से कुछ लिखा हुआ था:


"मैं लौट आई हूँ।"


और तभी मंदिर के बीचोंबीच वह लड़की प्रकट हुई। सफेद लिबास, खुले बाल, और आँखें… वैसी ही काली और गहरी।


उसकी आवाज़ गूंजने लगी, "तेरे दादा ने मुझसे वादा तोड़ा… अब तू उसकी कीमत चुकाएगा…"


अर्जुन ने ताबीज़ निकाल कर उसकी ओर फेंका। ताबीज़ हवा में चमकने लगा और लड़की चीखते हुए गायब हो गई। दीवारों की कंपन रुक गई। हवेली फिर से शांत हो गई थी।


लेकिन सिर्फ बाहर से… अंदर से कुछ अब भी जाग चुका था।


अर्जुन ने दादी से पूछा, “अब क्या होगा?”


दादी बोलीं, “अब तुझे उसकी कहानी पूरी जाननी होगी। चंद्रिका के साथ क्या हुआ, क्यों

 हुआ, और क्या वो सच में एक शाप थी… या कुछ और।”


क्या आपने कभी आईने में किसी और को देखा है?


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अगले भाग में पढ़ें:



“चंद्रिका का जन्म और शापित गांव का रहस्य ”


अध्याय 4 पढ़ें 


पिछला भाग: अध्याय 1 पढ़ें, अध्याय 2 पढ़ें


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अगला अध्याय जल्द ही...

> नोट: यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है। इसे केवल मनोरंजन हेतु लिखा गया है। इसे वास्तविक स्थानों, घटनाओं या व्यक्तियों से जोड़ कर न देखें।