नाम पुकारती आवाज़ – रेलवे क्वार्टर नंबर 76 की सच्ची घटना

Haunted railway staff quarter in India at night with fog and creepy silence
रेलवे क्वार्टर नंबर 76 की रात का दृश्य, जहाँ हर रात कोई 'नाम लेकर' पुकारता है… क्या आप होते तो रुकते?




डिस्क्लेमर: यह कहानी एक वास्तविक घटना पर आधारित है, जिसे लेखक ने शोध और गवाहों के आधार पर प्रस्तुत किया है। स्थान, नाम आदि गोपनीयता हेतु बदले गए हैं।





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🚉 क्वार्टर नंबर 76


साल 2006, जगह – उत्तर प्रदेश के एक छोटे स्टेशन पर स्थित रेलवे क्वार्टर कॉलोनी।


राकेश वर्मा, 38 वर्षीय सीनियर टिकट चेकर, का तबादला लखनऊ से करीब 60 किलोमीटर दूर एक साइड स्टेशन पर हुआ। वहाँ रहने की व्यवस्था के तहत, उसे रेलवे क्वार्टर नंबर 76 दिया गया।


क्वार्टर साधारण था — एक कमरा, एक किचन, टॉयलेट और बाहर टूटी-फूटी बेंच।


राकेश पहले ही दिन थोड़ा हैरान हुआ था — क्योंकि कमरे में हल्की सी सीलन और बदबू थी, जैसे बहुत समय से कोई वहाँ नहीं रहा हो।


> "कब से बंद था ये क्वार्टर?"

"पता नहीं साहब, काफी दिन हो गए… कोई टिकता नहीं इसमें" – यह जवाब सफाई कर्मचारी ने दिया।





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🌑 पहली रात – 2:45 बजे


सब ठीक चल रहा था, लेकिन पहली रात ही अजीब चीज़ घटी।


रात के 2:45 बजे – गहरी नींद में सो रहे राकेश को अचानक ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके कमरे के दरवाज़े के पास से उसका नाम लिया हो…


> "...राकेश..." (धीरे से)




वो उठा, बाहर देखा — कोई नहीं।



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📆 दूसरी, तीसरी, और चौथी रात…


रोज़ ठीक 2:45 बजे वही आवाज़।

कोई रुक-रुक कर, फुसफुसाहट में नाम लेता – "राकेश..."


कभी ऐसा लगता जैसे दरवाज़े के बाहर कोई खड़ा है, कभी खिड़की के पास।

पर बाहर निकलो तो कोई नहीं।



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🧓 स्टेशन मास्टर की चेतावनी


पाँचवें दिन राकेश ने स्टेशन मास्टर मिश्रा जी से बात की:


> "मिश्रा जी, उस क्वार्टर में कोई अजीब बात है?"




मिश्रा जी कुछ देर चुप रहे, फिर बोले:


> "बात 2002 की है… उस क्वार्टर में एक टीटी रहता था – राकेश शर्मा।

वो अचानक एक दिन गायब हो गया। तीन दिन बाद उसकी लाश रेलवे ट्रैक के पास मिली।

उसके बाद से… कोई वहाँ टिक नहीं पाया…"




राकेश की रगों में जैसे बर्फ दौड़ गई।



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🧠 मनोवैज्ञानिक कारण… या आत्मा?


राकेश ने सोचा शायद ये सब उसका वहम है।

उसने एक रात्रि को कैमरा ऑन किया – लेकिन 2:45 बजे जब आवाज़ आई, कैमरा बंद हो गया। बैटरी 80% थी।


अब यह सिर्फ डर नहीं था — हकीकत बन चुका था।



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🧳 अंतिम रात


राकेश ने एक आखिरी बार वहाँ रात बिताने की ठानी।


इस बार आवाज़ पास आई। बहुत पास।


> "...राकेश... राकेश..."




और फिर… एक हवा का झोंका, और शरीर में एक झटका — जैसे किसी ने उसे धक्का दिया हो।


राकेश गिरा नहीं, लेकिन कांप गया।


सुबह होते ही उसने अपना ट्रांसफर फिर से लखनऊ करवा लिया।



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📍 निष्कर्ष


आज भी रेलवे क्वार्टर नंबर 76 में कोई नहीं रहता।


कहते हैं…

कुछ आत्माएँ ‘जगह’ से नहीं… ‘ना

म’ से बंध जाती हैं।


> तो अगली बार जब कोई आपको आपके नाम से पुकारे… पहले देख लेना… वो इंसान है भी या नहीं।