नागवंश: अंतिम उत्तराधिकारी भाग १
दिल्ली की गर्मियों में जब हर व्यक्ति अपने पंखों और एसी के नीचे घुट रहा था, आर्यन रावत नाम का एक लड़का दिल्ली विश्वविद्यालय की सेंट्रल लाइब्रेरी में दोपहर के तीन बजे भी वही कुर्सी पकड़े बैठा था, जिस पर वो पिछले नौ महीनों से रोज बैठता आया था।
आर्यन, 26 साल का एक शोधार्थी था। उसका विषय — "भारतीय उपमहाद्वीप में नाग संस्कृति और नागवंशीय प्रभाव" के बारे में शोध करना था। उसका शोध विषय जितना दुर्लभ था, उतना ही अस्वीकृत भी। अधिकतर प्रोफेसर उसे समझाते — "आर्यन, यह सब मिथक है। रिसर्च उन चीज़ों पर करो जिन पर ग्रांट मिलती है।"
लेकिन आर्यन की ज़िद अजीब थी। उसे साँपों से डर नहीं लगता था —बल्कि खींचाव लगता था। उसे बचपन में भी कभी साँप को मारएते नहीं देखा, और न ही काटे जाने से डरा।उसकी रिसर्च का केंद्र था — मध्य और उत्तर भारत के वो गाँव, जहाँ नागपूजन एक परंपरा नहीं, पहचान रही है। वो मंदिर, वो जनजातियाँ, वो प्रतीक, वो गाथाएँ — जो इतिहास की किताबों से काट दी गईं।
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जून की एक शाम, जब वो लौटकर अपने किराए के कमरे में बैठा था, उसके लैपटॉप पर एक ईमेल आया: "विषय: अनुसंधान क्षेत्र भ्रमण की स्वीकृति" आपको प्रो. शैलेश त्रिपाठी के निर्देशन में 15 दिवसीय प्राथमिक स्थल अनुसंधान के लिए चयनित किया गया है। स्थान: चामकुंड गांव, ज़िला बागेश्वर, उत्तराखंड। आपसे अनुरोध है कि 17 जून को विभाग में रिपोर्ट करें। अन्य सभी व्यवस्थाओं की जानकारी शीघ्र ही साझा की जाएगी।
चामकुंड — एक अनसुना नाम, आर्यन ने तुरंत मैप खोला।चामकुंड…? गूगल मैप में कोई सीधी जानकारी नहीं मिली।बस पहाड़ियों के बीच एक नाम दर्ज था —
"चामकुंड क्षेत्र – वन विभाग द्वारा नियंत्रित प्रवेश क्षेत्र".
उसने पिन्च ज़ूम किया, वहाँ लिखा था: "प्राचीन जनजातीय क्षेत्र – वन निगम के अंतर्गत संरक्षित क्षेत्र" और वहीं पास में उसे एक लाइन दिखी, जिसने उसके माथे पर पसीना ला दिया — “आर. एस. रावत – वन अधिकारी, 2009 में स्थल पर हुई दुर्घटना में निधन।” आर. एस. रावत — यही नाम था उसके पिता का।
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आर्यन के पिता वन विभाग में थे। जब आर्यन 14 साल का था, तभी उसके पिता की अचानक मौत की खबर आई थी —"गिरने से मृत्यु", ऐसा लिखा था पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में। पर उस घटना के बाद न कोई शव मिला, न कोई अंतिम दर्शन।सिर्फ एक फाइल, जो परिवार को सौंपी गई — और फिर सब कुछ बंद।
आर्यन ने कभी ये बातें किसी से नहीं पूछीं। लेकिन आज…जब उसका रिसर्च उसी जगह ले जा रहा था — जहाँ उसके पिता आखिरी बार देखे गए थे… तो सवाल खुद-ब-खुद खुलने लगे।
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आर्यन ने चुपचाप अपनी किताबें, लैपटॉप, रिकॉर्डर और नोटबुक बैग में भरे। किसी को नहीं बताया कि वो कहाँ जा रहा है। न ही प्रोफेसरों से कोई बहस की। अब वो सिर्फ देखना चाहता था — क्यों वो नागवंश उसकी ज़िंदगी की कहानी बन चुका था, और क्यों उसका रास्ता बार-बार एक ही जगह की ओर लौट रहा था।

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