वो औरत जो हर अमावस को कुएं के पास बैठी मिलती है…
स्थान: बेहरामपुर, उत्तर प्रदेश
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[डिस्क्लेमर] यह कहानी लोककथाओं, ग्रामीण कथाओं और मौखिक परंपराओं पर आधारित है। इसमें प्रस्तुत घटनाएँ सच्ची प्रतीत हो सकती हैं, लेकिन इनका उद्देश्य केवल मनोरंजन और सस्पेंस है। पाठकों की संवेदनशीलता का ध्यान रखा गया है।
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भाग 1: वो कुआँ जो कभी सूखा नहीं…
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर ज़िले के पास एक छोटा-सा गाँव है—बेहरामपुर। चारों ओर घना जंगल, बीच में मिट्टी के घर, और सबसे किनारे... एक पुराना सूखा कुआँ।
पर अजीब बात ये है कि वो कुआँ कभी सूखता नहीं। गर्मियों में जब पूरे गांव के हैंडपंप जवाब दे जाते हैं, तब भी उस कुएं से पानी निकलता है... ठंडा, शांत... और डरावना।
गांव के बुज़ुर्ग कहते हैं कि उस कुएं के पानी में "किसी की आँखें" हैं। जब तुम पानी निकालते हो, तो कोई तुम्हें नीचे से देखता है। पर कोई उसे देख नहीं पाया... क्योंकि वहाँ झाँकने की हिम्मत किसी में नहीं।
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वो औरत... जो अमावस को आती है
हर अमावस्या की रात, गांव का हर दरवाज़ा बंद रहता है। लोग दीपक बुझा देते हैं, बच्चों को सोने के लिए मजबूर कर दिया जाता है।
क्योंकि रात के करीब 12 बजे, एक औरत आती है... चुपचाप, सफ़ेद साड़ी में... और उस कुएं के पास बैठ जाती है।
कोई उसे पहचान नहीं पाया, पर जिसने भी झाँका — उसने अगली सुबह घर नहीं छोड़ा।
बुजुर्गों की मानें, तो वो औरत "रूपा" है — जो सालों पहले इसी गांव की थी। उसकी शादी गांव के ज़मींदार के बेटे से तय हुई थी। लेकिन अमावस की रात कुछ ऐसा हुआ, जिसकी वजह से वो कुएं में गिर गई... या गिरा दी गई।
"अगर आपको ऐसी ही सच्ची घटनाओं पर आधारित डरावनी कहानियाँ पसंद हैं, तो आप भूतिया हवेली की वो खिड़की... जरूर पढ़ें।"
लोग कहते हैं उसकी आत्मा अब भी कुएं के पास बैठी है — शायद किसी को ढूंढ़ती है, शायद बदला लेना चाहती है...
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नई मास्टरनी का आगमन
2022 की बात है। गांव में एक नई स्कूल टीचर आई — मिस अदिति शर्मा। पढ़ी-लिखी, दिल्ली से आई थीं। उन्होंने गांव के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, और जल्दी ही सबकी प्रिय बन गईं।
पर अदिति को गांव की ये कहानियाँ दिलचस्प लगने लगीं। वो अपनी डायरी में इन सबका ज़िक्र करने लगीं। और एक दिन... उन्होंने ठान लिया — "मैं अमावस की रात उस कुएं के पास जाऊंगी।"
गांववालों ने मना किया। प्रधानजी ने चेतावनी दी। पर अदिति नहीं मानीं।
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अमावस की वो रात
रात के ठीक 12 बजे, अदिति ने अपना रिकॉर्डर चालू किया, टोर्च ली और अकेले चल पड़ीं — कुएं की ओर। हवा में अजीब सी गंध थी, जैसे कोई पुराना इत्र… और फिर, उन्हें किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी।
कुएं के पास पहुँचते ही उनकी टोर्च अपने-आप बंद हो गई। अब सिर्फ चाँद की हल्की रोशनी थी… और सामने कोई बैठा था।
एक औरत… सफ़ेद साड़ी में… बाल बिखरे हुए… और उसकी पीठ अदिति की ओर थी।
अदिति ने हिम्मत करके पूछा — "कौन हैं आप?"
कोई जवाब नहीं… बस एक धीमा, टूटा हुआ गीत…
"...जग सारा सोया रे… रूपा अब भी रोया रे…"
अदिति काँपने लगीं, पर उन्होंने रिकॉर्डर चालू रखा। तभी वो औरत धीरे-धीरे मुड़ी…
और जो चेहरा दिखा… वो इंसानी नहीं था। आँखें काली, होंठ सिले हुए… और उसके माथे पर किसी ने कुछ उकेरा था — जैसे कोई मंत्र।
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अदिति की डायरी का आखिरी पन्ना
अगली सुबह, अदिति स्कूल नहीं आईं। न वो घर में थीं, न स्कूल के क्वार्टर में। पुलिस आई, रिपोर्ट लिखी गई, पर कोई सुराग नहीं मिला।
बस उनकी डायरी मिली… आखिरी पन्ने पर लिखा था:
"वो रूपा नहीं है… वो कोई और है… वो किसी का इंतज़ार कर रही है… और अब शायद मैं… उसी का हिस्सा बन चुकी हूँ।"
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जारी रहेगा…
(भाग 2 में जानिए — अदिति के रिकॉर्डर में क्या रिकॉर्ड हुआ? और कुएं की सच्चाई क्या है?)
"इस रहस्य की परतें अभी खुलनी बाकी हैं…
तब तक पढ़ें – कमरा नंबर 103 और भूतों का स्टेशन जैसी दिल दहला देने वाली कहानियाँ।"
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