कहानी का आरंभ:
आयुष ने जब वह पुराना दर्पण खरीदा, तो उसे अंदाज़ा नहीं था कि ये दर्पण सिर्फ़ उसका प्रतिबिंब ही नहीं दिखाएगा, बल्कि उसकी आत्मा को भी निगल सकता है।
वह दर्पण एक पुराने हवेली के स्टोर से मिला था, जिस पर अब भी धूल की मोटी परत थी। दुकानदार ने कहा था — "इसे मत लो, ये… देखने से ज़्यादा दिखाता है।" लेकिन आयुष हँस पड़ा और दर्पण को अपने घर ले आया।
रात के समय जब वह अकेला था, तो दर्पण में अपने पीछे एक और छाया देखी — एक लड़की... जिसके बाल गीले थे और चेहरा अस्पष्ट।
आयुष ने पीछे मुड़ कर देखा — कुछ नहीं था। लेकिन जब उसने फिर से दर्पण में देखा, वो लड़की अब और पास आ चुकी थी।
अगले दिन उसने दर्पण को हटाने की कोशिश की, लेकिन वो दिवार से चिपक गया था... जैसे वो दर्पण नहीं, कोई दरवाज़ा हो...
एक रात बाद...
जब आयुष की माँ कमरे में गई, तो उसे सिर्फ़ एक चीज़ मिली — दर्पण में आयुष खड़ा था... मगर कमरे में वो नहीं था।
अब हर रात वो दर्पण में दिखता है। मुस्कराता है... इंतज़ार करता है किसी और के उसे देखने का।
क्या आप अगली बार दर्पण में झाँकने की हिम्मत करेंगे?
क्या तुम अगली दहशत का सामना करोगे?
"कमरा नंबर 103 – वो कमरा जो रात में साँसें रोक देता है" में छिपा है वो राज़... जो इस रात को और डरावना बना देगा।
(क्लिक करने से पहले सोच लो... लौटना आसान नहीं होगा...)
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