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आर्यन, अपने गुमशुदा पिता आर.एस.रावत की फाइल्स के सहारे चामकुंड क्षेत्र की रहस्यमयी यात्रा पर निकला है। वहाँ उसे न केवल "नाग वंश" के रहस्य की परछाइयाँ दिखती हैं, बल्कि अपने पिता से जुड़ी कई बातें उलझती नज़र आती हैं। अंतिम भाग में उसे एक पुरानी डायरी मिली, जिस पर एक नाम लिखा था — प्रो. अनीश रावल। अब आगे की कहानी
अब से 16 साल पहले, स्थान: नैनीताल वन विभाग – रेंजर ऑफिस, सुतोली ज़ोन, दिनांक: 3 जुलाई 2009,समय: रात 2:13 AM
छोटा-सा लकड़ी का दफ़्तर था, जिसकी पुरानी टीन की छत पर बारिश की बूँदें हल्की-हल्की बज रही थीं। अंदर एक कमज़ोर बल्ब टिमटिमा रहा था, और दीवार पर टंगी सरकारी घड़ी की सुइयाँ दो बजकर तेरह मिनट दिखा रही थीं।
रेंजर देवेंद्र बिष्ट अपनी डेस्क पर झुके हुए किसी फाइल को पढ़ रहे थे, जब दरवाज़े पर दस्तक हुई — तेज़ और घबराई हुई। “सर... वो एक और शव मिला है…” गॉर्ड की साँसें तेज़ चल रही थीं, जैसे वह भागकर आया हो। उसके चेहरे पर डर था — साफ़, बिना छुपे हुए।
“कहां...?” बिष्ट ने बिना सिर उठाए पूछा। “वहीं, सर... चामकुंड के पास... उसी पुराने मोड़ पर, जहां से आखिरी बार रावत साहब ने रिपोर्ट भेजी थी।” देवेंद्र का हाथ फाइल से हट गया। उन्होंने धीरे से सिर उठाया और पहली बार गॉर्ड की आँखों में झाँका — वहाँ उन्हें वही डर दिखा, जो 2009 की उस आखिरी रिपोर्ट में था।
एक पल को कमरे में सन्नाटा छा गया। फिर उन्होंने सीधा रेडियो ट्रांसमीटर की ओर हाथ बढ़ाया —“उसे बुलाओ. अभी।” गॉर्ड ने तुरंत वायरलेस का रिसीवर उठाया और सेटिंग की।
“अधिकारी रावत को कॉल किया जा रहा है... डीके-07... चामकुंड पोस्ट... जवाब दें, ओवर।.” — कोई उत्तर नहीं। सिर्फ़ रेडियो की खरखराती आवाज़ और जंगल की हवा की फुसफुसाहट।
फिर उन्होंने आखिरी बार दोहराया: “रावत साहब… अगर आप सुन पा रहे हैं, तो जवाब दीजिए…” और तभी रेडियो से वही अंतिम शब्द सुनाई दिए — एक रिकॉर्डेड लॉगिंग टेप, जो सिस्टम में सेव था। “चामकुंड के अंदर कुछ है… वो जंगल शांत नहीं है…” बस… इतना ही।
उसके बाद... सिर्फ़ सन्नाटा। बिष्ट ने चुपचाप वायरलेस को बंद किया और धीरे से अपनी डायरी निकाली। कवर पर लिखा था: "वर्गीकृत फ़ील्ड नोट्स – चामकुंड विसंगति | जून-जुलाई 2009" उन्होंने पन्ना पलटा, और एक तारीख पर कलम रोक दी — 18 जून 2009 – रावत की आखिरी साइट एंट्री।
उन्होंने दीवार पर टंगे नक़्शे को देखा — उस पर लाल निशान से एक जगह घिरी थी: “मूल सर्प मंदिर – प्रतिबंधित क्षेत्र” बाहर जंगल में कोई जानवर रो रहा था — या शायद... कोई और चीज़।
........
वर्तमान में,
रात गहरी थी। हवा में सिहरन थी, और जंगल की पत्तियों में एक अनजाना कंपन था — जैसे कोई सोया हुआ अब करवटें लेने लगा हो। आर्यन अब उस जगह खड़ा था —जहाँ से 16 साल पहले उसके पिता आर.एस.रावत आखिरी बार देखे गए थे।
उसके हाथ में वही पुरानी, धूल से सनी डायरी थी — जिसे वह प्रोफेसर त्रिपाठी के स्टोररूम से चुपचाप ले आया था। कवर पर मिट्टी जमी थी, लेकिन पन्नों में इतिहास धड़क रहा था। एक आखिरी एंट्री उसमें दर्ज थी, कांपती लिखावट में: “चामकुंड का गर्भ... नागों की आत्मा अब जाग रही है। अगर मैं वापस न आऊँ… तो इसे जला देना।”
आर्यन की उंगलियाँ उस पन्ने को सहला रही थीं, लेकिन तभी उसे महसूस हुआ कि एक पन्ना और जुड़ा है — जो शायद किसी ने बाद में चुपके से चिपकाया हो। वह पन्ना एक नक्शा था —हाथ से खींचा हुआ, जंगल के भीतर एक स्थान को दिखाता हुआ।
लाल स्याही से बनी थी एक चिन्ह — 🔺और नीचे सिर्फ तीन शब्द लिखे थे: नागपर्वत – रक्त कुंड
रात 11:43 — जंगल के भीतर, आर्यन अब अकेला था। कन्धे पर टॉर्च और बैग लटकाए, उसने उस ट्रैक को फॉलो किया जो नक्शे में दर्शाया गया था। झाड़ियाँ रास्ता रोक रही थीं, जड़ें उसके पैरों से लिपट रही थीं, और हर कुछ मिनटों में उसे ऐसा लग रहा था मानो पीछे कोई चल रहा हो।
उसे वो पुराना कैमरा याद आया —जो उसे अपने पिता की लकड़ी की संदूक से मिला था। पुराना सोनी मॉडल, जिसके ऊपर “डीके-07 फिल्ड यूज” लिखा था। आर्यन ने उसे ऑन किया। बीप... क्लिक…कैमरा चालू हुआ।
स्क्रीन पर नाइटविज़न मोड चालू था। वह इधर-उधर कैमरा घुमाता रहा फिर अचानक — रिकॉर्डिंग में एक धुंधली, राक्षसी-सी आवाज़ आई: “अगर यह रक्षक है… तो रक्षक का रक्त ही चढ़ेगा इस कुंड में…” आर्यन का कलेजा कांप गया।
उससे पहले कि वह कैमरा बंद कर पाता —झटाक! कैमरा किसी अदृश्य ताकत से उसके हाथ से गिर गया। स्क्रीन पर कुछ पल के लिए हरा झिलमिलाहट दिखा — और फिर ब्लैक।सिर्फ़ सन्नाटा।
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अचानक —पीछे किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। ठंडी, थरथराती सी उंगलियाँ। आर्यन ने झटके से मुड़कर देखा। एक आदमी खड़ा था — चेहरे की आधी त्वचा जैसे किसी आग में झुलस चुकी थी, आँखें धँसी हुई, और शरीर पर फौजी जैकेट की जली हुई परतें। लेकिन उसकी आवाज़ में एक ऐसा अधिकार था जो डरा भी रही थी, और कुछ कह रही थी: “तुम्हें यहाँ नहीं होना चाहिए।”
आर्यन पीछे हटा। “तुम कौन हो...?” वह आदमी एक पल उसे देखता रहा। फिर धीमे से बोला: “मैं अनीश रावल हूँ…तुम्हारे पिता का आखिरी साथी।” आर्यन सन्न रह गया।16 सालों से लापता...जिसका नाम सिर्फ़ दस्तावेज़ों में था —अब उसके सामने खड़ा था।
........….
जंगल के भीतर, सूखी पत्तियों के बीच हलचल के साथ आर्यन अब उस आदमी के सामने था —जिसके चेहरे पर अतीत की आग झुलसी हुई थी, और आँखों में वो बोझ था… जो केवल गवाह उठाता है।
अनीश रावल, धीमी पर स्थिर आवाज़ में बोलने लगा। “हमने… 16 साल पहले… वो दरवाज़ा खोला था जिसे हज़ारों साल से बंद रखा गया था। नागपर्वत के नीचे… हम कुछ खोज नहीं रहे थे… हम खुद खोजे जा रहे थे।”
आर्यन की साँसें रुक गईं। “वहाँ… सिर्फ़ अंधेरा नहीं था। वहाँ एक चेतना थी — नागकुल का संरक्षक। उसने कहा —‘जो रक्त नागवंश का नहीं…वह यहाँ जीवित नहीं रह सकता।’”
उसके शब्द जंगल की हवा में जैसे थरथराए। आर्यन का गला सूख गया। “मतलब... मेरे पिता... नागवंश से थे?” उसका स्वर काँप रहा था। अनीश ने धीरे से सिर हिलाया। “हाँ... और तुम भी।” “तुम्हारा जन्म... सिर्फ़ संयोग नहीं था। तुम उत्तराधिकारी हो, आर्यन। तुम्हारे पिता को पता था कि नागकुंड फिर जागेगा… और वो अपने वंश का खून माँगेगा।”
आर्यन एक कदम पीछे हटा। जैसे ज़मीन उसके नीचे से खिसक रही हो। उसने अब वो डायरी निकाली —जो बरसों से उसकी किस्मत को लिखती आई थी।
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जंगल खुलने लगा। झाड़ियाँ पीछे छूटने लगीं और उनके सामने आया एक विचित्र स्थान — चारों तरफ़ ऊँची काली चट्टानों से घिरा एक प्राचीन जलकुंड — जिसके बीच में जल नहीं, एक रहस्यमयी ठहराव था। कुंड के किनारों पर नागों की आकृतियाँ खुदी थीं —कुछ अधजली, कुछ रक्त से सनी।
चाँद की रोशनी जैसे उस जलकुंड से डरती हो। आर्यन ने धीमे से डायरी खोली। उसका हाथ काँप रहा था। पन्ने पलटे —और वहाँ लिखी थी उसके पिता की अंतिम पंक्ति: “रक्त वही है… जो वंश को ज़िंदा रखता है… और यही सत्य है… ।”
आर्यन की आँखों में जैसे कुछ उतर आया स्वीकृति... और डर। वह एक कदम कुंड की ओर बढ़ा…तभी —कुंड का जल हिलने लगा। पहले उसका रंग गहरा नीला… फिर काला…और फिर — गाढ़ा लाल। जैसे किसी ने उसमें खून घोल दिया हो।
झाड़ियों के पीछे से कोई सरसराई…फिर एक फुसफुसाहट —मानव स्वर में, पर उससे अलग…“स्वागत है… अंतिम उत्तराधिकारी…”
आर्यन ठिठक गया।उसके चारों ओर की हवा भारी हो गई।कुंड की सतह अब हलचल में थी —जैसे वो कुछ स्वीकार कर रहा हो… या बुला रहा हो।
.............
क्या आर्यन वास्तव में नागवंश से है?
क्या आर.एस.रावत अब भी जीवित हैं?
और क्या प्रोफेसर अनीश रावल सच बोल रहे हैं… या फिर कोई और चाल चल रहे हैं?
(जारी है....)

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