अंधे कुएं का रहस्य हिंदी हॉरर कहानी के लिए डरावना बुक कवर – एक बच्चा प्राचीन और श्रापित कुएं के पास खड़ा है, गांव की डरावनी रात, कोहरा, भूतिया वातावरण, तांत्रिक आत्मा, डरावनी आत्माओं से जुड़ी हिंदी डरावनी कहानी के लिए परफेक्ट इमेज।

अंधे कुएं का रहस्य



"इस कुएं से कोई भी लौट कर नहीं आता... फिर चाहे वो प्यासा ही क्यों न हो।"

राजस्थान के एक छोटे से गांव 'बख्तपुर' में एक पुराना कुआं था। लोग कहते थे — ये कुआं कभी सूखता नहीं, लेकिन जो इसमें झांकता है, वो धीरे-धीरे अपनी जान खोने लगता है।



शुरुआत — वो गर्मी की दोपहर

गांव के बच्चे खेलते-खेलते थक चुके थे। सूरज आसमान को जला रहा था। तभी किशन नाम का 10 साल का लड़का, पानी की तलाश में उस पुराने कुएं तक पहुंच गया।

वो जैसे ही बाल्टी नीचे डालने गया... अंदर से किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया!

किशन चीखा — लेकिन कोई आवाज़ नहीं आई। जब गांववाले दौड़कर पहुंचे, कुआं सूना था। सिर्फ़ एक चीज़ बची थी — किशन की चप्पल।



गांव की सच्चाई

दादी मां ने बताया कि ये कुआं पहले एक तांत्रिक का आश्रम था। वहां बलि दी जाती थी — खासकर बच्चों की। एक दिन गांववालों ने विरोध किया, और तांत्रिक को उसी कुएं में धकेल दिया।

पर वो मरा नहीं... उसकी आत्मा अब भी कुएं में है। और जो भी प्यासा वहां जाता है, वो उस आत्मा की अगली 'बलि' बन जाता है।




रात को कुएं से आती हैं आवाज़ें...

“पानी... मुझे प्यास लगी है... मेरी आत्मा जल रही है...”

ये आवाज़ें रात को आती हैं। कुछ लोगों ने कैमरा लगाया, लेकिन तस्वीरें धुंधली और टूटी मिलीं। एक बार एक साधु वहां रुका, और सुबह तक पागल हो चुका था।



आज का सच

अब गांववालों ने कुएं को लोहे की सलाखों से बंद कर दिया है। लेकिन कहते हैं — अगर कोई भूले से भी सलाखें हटा दे... तो एक नई आत्मा कुएं में उतरती है।



क्या आप झांकना चाहेंगे उस कुएं में?

नीचे कमेंट में ज़रूर बताएं – आपकी कहानी अगले पोस्ट में छप सकती है!

क्या तुम अगली दहशत का सामना करोगे?

"अंधेरे का सफ़र – एपिसोड 1हवेली की तीसरी मंज़िल " में छिपा है वो राज़... जो इस रात को और डरावना बना देगा।

(क्लिक करने से पहले सोच लो... लौटना आसान नहीं होगा...)




डिस्क्लेमर:


यह लेख एक रहस्यमयी कथा और जनश्रुतियों पर आधारित है। इसमें दी गई जानकारी का उद्देश्य केवल मनोरंजन और जिज्ञासा को बढ़ाना है। इसमें वर्णित घटनाएं, स्थान, और अनुभव सत्य हो भी सकते हैं और नहीं भी। पाठकों से निवेदन है कि वे इसे कल्पना और अनुभवजन्य तथ्यों के रूप में लें, न कि प्रमाणिक सच्चाई के रूप में।